आपत्ति में ही धैर्य की परीक्षा होती है
आपत्ति में ही
धैर्य की परीक्षा होती है
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🔷 आज देश में जहाँ लॉकडाउन हो रहा है, वहीं 33 वर्षों बाद दूरदर्शन चैनल पर भारत सरकार द्वारा फिर से रामायण का प्रसारण करना मानवीय मूल्यों को एक बार फिर से समेटने का प्रयास भी है ।
🔷 रामायण के दो प्रसंग जो इस समय 'कोरोना महामारी' के कहर के समय हमें सिखाते हैं कि आज का दु:ख ही कल के सुख की आधारशिला है । महाराज दशरथ को जब संतान प्राप्ति नहीं हो रही थी, तब वो बड़े दुःखी रहते थे । पर ऐसे समय में उनको एक ही बात से हौंसला मिलता था जो कभी उन्हें आशाहीन नहीं होने देता था, वो हौंसला था - पितृभक्त श्रवण कुमार के पिता का दशरथ जी को दिया गया श्राप और देखिए, यह कोई किसी ऋषि-मुनि या देवता का वरदान नहीं था, बल्कि एक श्राप था ।
🔷 दशरथ जी जब जब संतान न होने से दुःखी होते तो उन्हें श्रवण कुमार के पिता का दिया हुआ श्राप याद आ जाता था । उन्होंने शाप दिया था कि 'जैसे आज मैं पुत्र वियोग में तड़प तड़पकर मर रहा हूँ, वैसे ही तू भी अपने पुत्र के वियोग में तड़प तड़पकर मरेगा ।'
🔷 दशरथ जी को पता था कि एक न एक दिन यह श्राप अवश्य फलीभूत होगा और इससे उन्हें एक सुखद आशा की अनुभूति होती कि इस जन्म में उन्हें संतान अवश्य प्राप्त होगी । यह श्राप ही दशरथ जी के लिए संतान प्राप्ति का सौभाग्य बनकर आया ।
🔶 कुछ ऐसी ही एक घटना सुग्रीव के साथ भी घटी । सुग्रीव जब माता सीता जी की खोज में वानर वीरों को पृथ्वी की अलग अलग दिशाओं में भेज रहे थे तो वे उन वानर वीरों को यह भी बता रहे थे कि उन्हें किस दिशा में क्या मिलेगा और किस दिशा में तुम्हें जाना चाहिए या नहीं जाना चाहिए । प्रभु श्रीराम सुग्रीव का यह भौगोलिक ज्ञान देखकर हतप्रभ थे । उन्होंने सुग्रीव से पूछा कि 'सुग्रीव ! तुम्हें यह सब कैसे मालूम है ?'
🔶 इस पर सुग्रीव ने प्रभु राम से कहा - 'भगवन ! मैं जब बाली के भय से मारा मारा फिर रहा था, तब पूरी पृथ्वी पर मुझे कहीं भी शरण नहीं मिली और इस चक्कर में मैंने पूरी पृथ्वी छान मारी, इसी दौरान मुझे सारे भूगोल का ज्ञान हो गया ।'
🔶 सोचिए, अगर सुग्रीव पर यह संकट न आया होता तो क्या उन्हें भूगोल का ज्ञान प्राप्त हो पाता ? बल्कि माता जानकी जी को खोजना अत्यधिक कठिन हो जाता ।
♦ अनुकूलता भोजन है, प्रतिकूलता विटामिन हैं, चुनौतियाँ वरदान हैं और जो उनके अनुसार व्यवहार करे, वही पुरुषार्थी है । ईश्वर की तरफ से मिलने वाला हर एक पुष्प अगर वरदान है तो हर एक कांटा भी वरदान ही समझना चाहिए । इसका मतलब यह है कि यदि आज मिले सुख से हम खुश हैं तो जीवन में यदि कभी कोई दु:ख, विपदा, कार्य में अड़चने आ जाएं तो घबराना नहीं, क्या पता यह सब आने वाले किसी सुख की तैयारी हो !
♦ बस, इस नाजुक दौर में धैर्य और संयम के साथ बड़ी ही निष्ठा से लाॅकडाउन का पालन करें । बहुत ज्यादा मजबूरी हो तो ही बड़ी सतर्कता के साथ घर से बाहर निकलें और लॉकडाउन के नियमों का सत-प्रतिशत पालन करें । आपका कल्याण हो !
राधे राधे कृष्णा
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