Special Report: कोरोना वायरस की महामारी से निपटने के लिए कितना तैयार है भारत?
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Special Report: कोरोना वायरस की महामारी से निपटने के लिए कितना तैयार है भारत?
आंकड़े बता रहे हैं कि कई देशों की सरकारों ने इसकी चाप को समय रहते नहीं सुना. इसमें अमेरिका, इटली से लेकर ईरान तक शामिल हैं. स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता को थोड़ी देर के लिए दरकिनार भी कर दें तो तकरीबन हर जगह की सरकारों ने तब तक कोई एक्शन नहीं लिया, जब तक यह बीमारी गुपचुप तरीके से महामारी नहीं बन गई.
पूरी दुनिया के लिए खौफ का दूसरा नाम बन चुके कोरोना वायरस की सबसे खतरनाक प्रवृत्ति है इसकी चाल. पहले इसके लक्षण इक्का दुक्का लोगों में दिखते हैं, लेकिन दो से तीन हफ्ते में जंगल की आग की तरह फैलते हैं. आंकड़े बता रहे हैं कि कई देशों की सरकारों ने इसकी चाप को समय रहते नहीं सुना. इसमें अमेरिका, इटली से लेकर ईरान तक शामिल हैं. स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता को थोड़ी देर के लिए दरकिनार भी कर दें तो तकरीबन हर जगह की सरकारों ने तब तक कोई एक्शन नहीं लिया, जब तक यह बीमारी गुपचुप तरीके से महामारी नहीं बन गई.
बीमारी को रोकने के कम और शेयर बाजार के गिरने से लेकर राजनीतिक उठापटक की चिंता तकरीबन सभी देशों ने ज्यादा दिखाई. कोरोना वायरस से जुड़े विभिन्न देशों के आंकड़े और मॉडल बता रहे हैं कि सरकार की ओर से जारी मरीजों की संख्या के मुकाबले यह बीमारी दस गुना पैठ बना चुकी होती है. एक्सपर्ट मानते हैं कि अगर सरकारें आउटब्रेक से पहले सजगता दिखाती हैं तो इसके फैलने की संभावना को दस गुना कम किया जा सकता है.
निमोनिया की तरह दिखने वाली बीमारी दबे पांव आपके करीब आ गई है. चीन में इसके फैलने और उसे रोकने के लिए वहां की विफलता और सफलता से बहुत सारे देशों ने कुछ नहीं सीखा. कुछ चीन के खानपान और चमगादड़ गिनते रहे और कुछ ने विकसित होने के दंभ में अपने सैकड़ों नागरिकों की जान जोखिम में डाल दी. तीन देशों-इटली, ईरान और अमेरिका का उदाहरण सामने है. केवल एक हफ्ते में कोरोना वायरस के नए मरीजों और उसकी वजह से दम तोड़ने वालों की संख्या चीन से आगे निकल चुकी है. सवाल है कि क्या भारत इस बीमारी के बड़े आउटब्रेक के लिए तैयार है.
फिलहाल कोरोना दुनिया के सौ से ज्यादा देशों में फैल चुका है. चीन का अनुभव बताता है कि कैसे सरकार शुरुआत में फेल हो गई लेकिन बाद में शहरों के लॉक डॉउन के जरिए इस बीमारी को नियंत्रित कर लिया गया. यहां सरकार की प्रतिक्रिया में लगने वाला समय महत्वपूर्ण है. इटली, जर्मनी, ईरान और अमेरिका जैसे देशों ने आपाधापी में लॉकडाउन उस समय शुरू किया जब मामला काफी बिगड़ चुका है.
सामाजिक दूरी (सोशल डिस्टेंस) इस बीमारी को रोकने का पहला कदम होना था लेकिन यह आखिरी कदम के रूप में इस्तेमाल हुआ है. हालांकि भारत में कुछ जगहों पर ‘सामाजिक दूरी’ जैसे स्कूल, मेला या दूसरे तरह के सामूहिक आयोजनों पर रोक लगी है लेकिन इनकी संख्या बहुत सीमित है. ये कदम क्यों महत्वपूर्ण है इसे हम कोरोना वायरस के केंद्र में रहे चीन के हुबई प्रांत की पड़ताल से समझ सकते हैं.
चीन का अनुभव
26 दिसंबर को चीन के हुबई प्रांत की राजधानी वुहान में एचआईसीडब्लूएम हॉस्पीटल के डॉक्टर जिंग्सियांग झांग ने चार मरीजों में निमोनिया जैसी लगने वाली अजीब बीमारी देखी. झांग ने 27 दिसंबर को इसकी जानकारी स्थानीय स्वास्थ्य विभाग को दी. 28 और 29 दिसंबर को ठीक वैसी ही बीमारी वाले तीन और मरीज उनके पास आए. 30 दिसंबर को भी कुछ और मरीज आने लगे. 31 दिसंबर को वुहान हेल्थ कमीशन ने चीन सरकार के केंद्रीय हेल्थ कमीशन को एक अनजान बीमारी के बारे में एलर्ट किया. उसी दिन चीन सरकार ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को भी इस बीमारी के बारे में जानकारी दी.
पहली जनवरी को वुहान का समुद्री जीवों को बेचे जाने वाला बाजार बंद कर दिया गया. 7 जनवरी को चीनी डॉक्टरों ने नई प्रजाति वाले कोरोना वायरस (2019-nCoV) की पहचान की. 12 जनवरी को डॉक्टरों ने बीमारी के जेनेटिक सिक्वेंस (जैविक संरचना) को दुनिया के बाकी देशों के डॉक्टरों और वैज्ञानिकों की संस्थाओं के साथ साझा किया ताकि उन्हें बीमारी पहचानने में मदद मिले. 13 जनवरी को पहली बार 2019-nCoV के लिए टेस्ट किट तैयार की गई. 20 जनवरी को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने COVID-19 नाम देते हुए मेडिकल में इसे बी कैटेगरी (नोटिस देना जरूरी) वाली बीमारी घोषित कर दिया.
23 जनवरी को चीन की सरकार ने वुहान सिटी को पूरी तरह बंद कर दिया. अगले दिन यानी 24 जनवरी को 15 और शहरों को पूरी तरह बंद कर दिया गया. लोगों को घरों से बाहर निकलने की इजाजत नहीं दी गई. इस बीच बाकी दुनिया ‘चमगादड़’ के जूस को बीमारी की वजह, ‘गोबर’ से इलाज, ‘गर्मी के बाद राहत’ और शहरों के लॉक डॉउन पर चीन को मानवाधिकार समझाने में व्यस्त रही. हुबई प्रांत के आंकड़े बताते हैं कि 21 जनवरी से आधिकारिक रूप से दर्ज मामले तेजी (पीले रंग के चार्ट) से बढ़ने लगे. जिसके दो दिन बाद यानी 23 जनवरी को शहरों को बंद कर दिया गया.
लॉक डाउन के बाद गैर सरकारी मामलों (ग्रे कलर चार्ट) में कमी आने लगी. बीमारी के चीन से बाहर यानी अंतरराष्ट्रीय फैलाव को रोकने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 30 जनवरी को पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर दी, जिससे हर देश को इस तरह की बीमारी की सूचना विश्व स्वास्थ्य संगठन को देना जरूरी हो गया. इस चार्ट से साफ है कि शुरुआत में चीन के अधिकारियों को बीमार लोगों की सही संख्या की जानकारी नहीं थी. उन्हें इसकी जानकारी तब हुई जब लोग डॉक्टर के पास गए और डॉक्टरों ने कोरोना के लक्षण देखना शुरू किया.
चार्ट में पीला रंग बता रहा है कि सरकारी कागजों में दर्ज मरीजों की संख्या कितनी थी और वास्तविक संख्या (ग्रे रंग) कितनी थी. मिसाल के तौर पर 21 जनवरी को सरकारी संख्या 100 थी जबकि उसी दिन वास्तव में नए मरीजों की संख्या 1500 थी. अधिकारियों को समझ में नहीं आ रहा था कि अभी तो संख्या 100 थी फिर इतने ज्यादा मरीज कहां से आ गए. दो दिन बाद अधिकारियों ने शहर को पूरी तरह बंद कर दिया. बंद की घोषणा वाले दिन नए मरीजों की संख्या 400 के करीब थी, जबकि वास्तविक संख्या 2,500 के आसपास थी. इस बात की जानकारी सरकारी अधिकारियों को नहीं थी. उस दिन हुबई के 15 और शहरों को बंद कर दिया गया.
चार्ट में साफ दिख रहा है कि उस वक्त मरीजों की संख्या काफी बढ़ चुकी थी. वुहान सिटी के बंद करने के दो दिन तक नए मरीजों की संख्या बढ़ती रही लेकिन उसके बाद गिरावट आने लगी. सरकारी संख्या (पीले रंग) अगले 12 दिनों तक बढ़ती रही, क्योंकि शहर बंद था और बीमारी के लक्षण वाले लोग सीधे डॉक्टर्स के पास जाने लगे. मरीजों का एक तरह से नियंत्रित फ्लो डॉक्टर्स की ओर हो गया.
यहां सरकारी आंकड़े और वास्तविक आंकड़ों के फर्क और फैलाव को समझना जरूरी होगा.
चीन के बाकी हिस्से को वुहान सिटी से काटने का सीधा असर दिखा. हुबई के अलावा चीन के बाकी हिस्से में नए मरीजों की संख्या किसी तरह नियंत्रित कर ली गई. जबकि उस दौरान 20 फरवरी से लेकर पांच मार्च तक दक्षिण कोरिया, इटली और ईरान में यह संख्या तेजी से बढ़ने लगी.
चीन ने जनवरी में हुबई प्रांत में जो कदम उठाए उसका सीधा असर बाकी क्षेत्रों पर दिखा. इटली, ईरान और अमेरिका के पास एक महीने का समय था लेकिन इन सरकारों ने वही कदम बहुत देर से उठाए. गुरुवार (12 मार्च, नौ बजे रात) तक के आंकड़े बता रहे हैं कि नए मरीजों की संख्या चीन में 18 है तो ईरान में एक हजार से ऊपर, स्पेन में सात सौ से ज्यादा, जर्मनी में करीब चार सौ और अमेरिका में चौहत्तर से ज्यादा दिखी. 12 मार्च को दुनिया भर में इस बीमारी की वजह से कुल 134 लोगों की मौत हुई है जिनमें चीन में 11, ईरान में 14, स्पेन में 29 लोगों की मौत हुई है.
दक्षिण कोरिया ने गलती दोहराई लेकिन जापान, सिंगापुर, थाईलैंड जैसे कई देशों ने बहुत कुछ सीखा. एक्सपर्ट तोमास पाइयो का कहना है कि इन देशों ने न केवल चीन में इस बीमारी के फैलने और उसे रोकने के तौर-तरीकों को बारीकी से समझा बल्कि उस पर अमल भी किया. इन देशों ने 2003 में सार्स का प्रकोप झेला था, इसलिए उन्होंने कोरोना को भी गंभीरता से लिया.
चीन के हुबई की तरह इटली यूरोप का, ईरान पश्चिम एशिया का और वॉशिंगटन अमेरिका का कोरोना वायरस का केंद्र बन गया है. इन देशों में मृत्यु दर ज्यादा है क्योंकि हफ्तों से बीमारी फैलती रही लेकिन सरकारी फाइलों में ये नंबर दर्ज नहीं हो रहे थे.
कोरोना वायरस से पीड़ित व्यक्ति इनफेक्शन के बाद औसतन सत्रह दिन तक जिंदा रहता है. पाइयो का कहना है कि अगर अमेरिका में कोई व्यक्ति 29 फरवरी को मर जाता है तो उसे इन्फेक्शन करीब 12 फरवरी को हुआ होगा. पाइयो का कहना है कि कोरोना वायरस के मरीजों की संख्या और उनकी मौत के अनुपात से लगता है कि कई देशों के पास वास्तविक संख्या की जानकारी नहीं है.
कुछ इस तरह पता किया जा सकता है कोरोना मरीजों की सही संख्या
मृत्यु दर के आधार पर मरीजों की वास्तविक संख्या
पाइयो का कहना है कि अगर आपके आसपास किसी कोरोना मरीज की मौत हुई है तो उसके आधार पर उस एरिया में बाकी मरीजों की संख्या का अंदाजा किया जा सकता है. कोरोना के मरीज की मौत औसतन 17.3 दिन में होती है.
पाइयो ने वॉशिंगटन स्टेट का उदाहरण लिया है. मान लीजिए किसी कोरोना मरीज की मौत 29 फरवरी को होती है तो इसका मतलब कि वह व्यक्ति 12 फरवरी के आसपास संक्रमित हुआ होगा. पाइयो इस अनुमान को समझाने के लिए मृत्यु दर एक फीसदी रखते हैं. जिसका मतलब है कि इस इलाके में सौ मरीज होंगे. फिर पाइयो उस औसत समय को लेते हैं जब मामले दोगुने हो जाएंगे. इसके लिए उन्होंने अपने मॉडल में 6.2 लिया है.
अगर सत्रह दिन में मरीज की मौत हो रही है तो इस दौरान कुल मरीज की संख्या में आठ गुनी वृद्धि हो सकती है. ~8 (=2^(17/6)) . इसलिए अगर हम सभी मरीजों को डायग्नोज नहीं करते हैं तो इसका मतलब है आज के दिन एक मौत यानी वास्तव में मरीजों की संख्या 800 है. अगर पाइयो का मॉडल भारत में लगाया जाए तो कर्नाटक के उस इलाके में तकरीब 800 कोरोना मरीज हो सकते हैं.
हालांकि कोई भी मॉडल पूरी तरह सही नहीं होता लेकिन अक्सर महामारी के मामले में मरीजों की सही संख्या आधिकारिक आंकड़ों से ज्यादा होती है ऐसे में इस तरह के मॉडल एहतियात बरतने में कारकर साबित होते हैं.
FILLING INCOME TAX & GSTR RETURN REGISATAION REGARDING WHAT APP
पूरी दुनिया के लिए खौफ का दूसरा नाम बन चुके कोरोना वायरस की सबसे खतरनाक प्रवृत्ति है इसकी चाल. पहले इसके लक्षण इक्का दुक्का लोगों में दिखते हैं, लेकिन दो से तीन हफ्ते में जंगल की आग की तरह फैलते हैं. आंकड़े बता रहे हैं कि कई देशों की सरकारों ने इसकी चाप को समय रहते नहीं सुना. इसमें अमेरिका, इटली से लेकर ईरान तक शामिल हैं. स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता को थोड़ी देर के लिए दरकिनार भी कर दें तो तकरीबन हर जगह की सरकारों ने तब तक कोई एक्शन नहीं लिया, जब तक यह बीमारी गुपचुप तरीके से महामारी नहीं बन गई.
बीमारी को रोकने के कम और शेयर बाजार के गिरने से लेकर राजनीतिक उठापटक की चिंता तकरीबन सभी देशों ने ज्यादा दिखाई. कोरोना वायरस से जुड़े विभिन्न देशों के आंकड़े और मॉडल बता रहे हैं कि सरकार की ओर से जारी मरीजों की संख्या के मुकाबले यह बीमारी दस गुना पैठ बना चुकी होती है. एक्सपर्ट मानते हैं कि अगर सरकारें आउटब्रेक से पहले सजगता दिखाती हैं तो इसके फैलने की संभावना को दस गुना कम किया जा सकता है.
निमोनिया की तरह दिखने वाली बीमारी दबे पांव आपके करीब आ गई है. चीन में इसके फैलने और उसे रोकने के लिए वहां की विफलता और सफलता से बहुत सारे देशों ने कुछ नहीं सीखा. कुछ चीन के खानपान और चमगादड़ गिनते रहे और कुछ ने विकसित होने के दंभ में अपने सैकड़ों नागरिकों की जान जोखिम में डाल दी. तीन देशों-इटली, ईरान और अमेरिका का उदाहरण सामने है. केवल एक हफ्ते में कोरोना वायरस के नए मरीजों और उसकी वजह से दम तोड़ने वालों की संख्या चीन से आगे निकल चुकी है. सवाल है कि क्या भारत इस बीमारी के बड़े आउटब्रेक के लिए तैयार है.
फिलहाल कोरोना दुनिया के सौ से ज्यादा देशों में फैल चुका है. चीन का अनुभव बताता है कि कैसे सरकार शुरुआत में फेल हो गई लेकिन बाद में शहरों के लॉक डॉउन के जरिए इस बीमारी को नियंत्रित कर लिया गया. यहां सरकार की प्रतिक्रिया में लगने वाला समय महत्वपूर्ण है. इटली, जर्मनी, ईरान और अमेरिका जैसे देशों ने आपाधापी में लॉकडाउन उस समय शुरू किया जब मामला काफी बिगड़ चुका है.
सामाजिक दूरी (सोशल डिस्टेंस) इस बीमारी को रोकने का पहला कदम होना था लेकिन यह आखिरी कदम के रूप में इस्तेमाल हुआ है. हालांकि भारत में कुछ जगहों पर ‘सामाजिक दूरी’ जैसे स्कूल, मेला या दूसरे तरह के सामूहिक आयोजनों पर रोक लगी है लेकिन इनकी संख्या बहुत सीमित है. ये कदम क्यों महत्वपूर्ण है इसे हम कोरोना वायरस के केंद्र में रहे चीन के हुबई प्रांत की पड़ताल से समझ सकते हैं.
चीन का अनुभव
26 दिसंबर को चीन के हुबई प्रांत की राजधानी वुहान में एचआईसीडब्लूएम हॉस्पीटल के डॉक्टर जिंग्सियांग झांग ने चार मरीजों में निमोनिया जैसी लगने वाली अजीब बीमारी देखी. झांग ने 27 दिसंबर को इसकी जानकारी स्थानीय स्वास्थ्य विभाग को दी. 28 और 29 दिसंबर को ठीक वैसी ही बीमारी वाले तीन और मरीज उनके पास आए. 30 दिसंबर को भी कुछ और मरीज आने लगे. 31 दिसंबर को वुहान हेल्थ कमीशन ने चीन सरकार के केंद्रीय हेल्थ कमीशन को एक अनजान बीमारी के बारे में एलर्ट किया. उसी दिन चीन सरकार ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को भी इस बीमारी के बारे में जानकारी दी.
पहली जनवरी को वुहान का समुद्री जीवों को बेचे जाने वाला बाजार बंद कर दिया गया. 7 जनवरी को चीनी डॉक्टरों ने नई प्रजाति वाले कोरोना वायरस (2019-nCoV) की पहचान की. 12 जनवरी को डॉक्टरों ने बीमारी के जेनेटिक सिक्वेंस (जैविक संरचना) को दुनिया के बाकी देशों के डॉक्टरों और वैज्ञानिकों की संस्थाओं के साथ साझा किया ताकि उन्हें बीमारी पहचानने में मदद मिले. 13 जनवरी को पहली बार 2019-nCoV के लिए टेस्ट किट तैयार की गई. 20 जनवरी को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने COVID-19 नाम देते हुए मेडिकल में इसे बी कैटेगरी (नोटिस देना जरूरी) वाली बीमारी घोषित कर दिया.
23 जनवरी को चीन की सरकार ने वुहान सिटी को पूरी तरह बंद कर दिया. अगले दिन यानी 24 जनवरी को 15 और शहरों को पूरी तरह बंद कर दिया गया. लोगों को घरों से बाहर निकलने की इजाजत नहीं दी गई. इस बीच बाकी दुनिया ‘चमगादड़’ के जूस को बीमारी की वजह, ‘गोबर’ से इलाज, ‘गर्मी के बाद राहत’ और शहरों के लॉक डॉउन पर चीन को मानवाधिकार समझाने में व्यस्त रही. हुबई प्रांत के आंकड़े बताते हैं कि 21 जनवरी से आधिकारिक रूप से दर्ज मामले तेजी (पीले रंग के चार्ट) से बढ़ने लगे. जिसके दो दिन बाद यानी 23 जनवरी को शहरों को बंद कर दिया गया.
लॉक डाउन के बाद गैर सरकारी मामलों (ग्रे कलर चार्ट) में कमी आने लगी. बीमारी के चीन से बाहर यानी अंतरराष्ट्रीय फैलाव को रोकने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 30 जनवरी को पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर दी, जिससे हर देश को इस तरह की बीमारी की सूचना विश्व स्वास्थ्य संगठन को देना जरूरी हो गया. इस चार्ट से साफ है कि शुरुआत में चीन के अधिकारियों को बीमार लोगों की सही संख्या की जानकारी नहीं थी. उन्हें इसकी जानकारी तब हुई जब लोग डॉक्टर के पास गए और डॉक्टरों ने कोरोना के लक्षण देखना शुरू किया.
चार्ट में पीला रंग बता रहा है कि सरकारी कागजों में दर्ज मरीजों की संख्या कितनी थी और वास्तविक संख्या (ग्रे रंग) कितनी थी. मिसाल के तौर पर 21 जनवरी को सरकारी संख्या 100 थी जबकि उसी दिन वास्तव में नए मरीजों की संख्या 1500 थी. अधिकारियों को समझ में नहीं आ रहा था कि अभी तो संख्या 100 थी फिर इतने ज्यादा मरीज कहां से आ गए. दो दिन बाद अधिकारियों ने शहर को पूरी तरह बंद कर दिया. बंद की घोषणा वाले दिन नए मरीजों की संख्या 400 के करीब थी, जबकि वास्तविक संख्या 2,500 के आसपास थी. इस बात की जानकारी सरकारी अधिकारियों को नहीं थी. उस दिन हुबई के 15 और शहरों को बंद कर दिया गया.
चार्ट में साफ दिख रहा है कि उस वक्त मरीजों की संख्या काफी बढ़ चुकी थी. वुहान सिटी के बंद करने के दो दिन तक नए मरीजों की संख्या बढ़ती रही लेकिन उसके बाद गिरावट आने लगी. सरकारी संख्या (पीले रंग) अगले 12 दिनों तक बढ़ती रही, क्योंकि शहर बंद था और बीमारी के लक्षण वाले लोग सीधे डॉक्टर्स के पास जाने लगे. मरीजों का एक तरह से नियंत्रित फ्लो डॉक्टर्स की ओर हो गया.
यहां सरकारी आंकड़े और वास्तविक आंकड़ों के फर्क और फैलाव को समझना जरूरी होगा.
चीन के बाकी हिस्से को वुहान सिटी से काटने का सीधा असर दिखा. हुबई के अलावा चीन के बाकी हिस्से में नए मरीजों की संख्या किसी तरह नियंत्रित कर ली गई. जबकि उस दौरान 20 फरवरी से लेकर पांच मार्च तक दक्षिण कोरिया, इटली और ईरान में यह संख्या तेजी से बढ़ने लगी.
चीन ने जनवरी में हुबई प्रांत में जो कदम उठाए उसका सीधा असर बाकी क्षेत्रों पर दिखा. इटली, ईरान और अमेरिका के पास एक महीने का समय था लेकिन इन सरकारों ने वही कदम बहुत देर से उठाए. गुरुवार (12 मार्च, नौ बजे रात) तक के आंकड़े बता रहे हैं कि नए मरीजों की संख्या चीन में 18 है तो ईरान में एक हजार से ऊपर, स्पेन में सात सौ से ज्यादा, जर्मनी में करीब चार सौ और अमेरिका में चौहत्तर से ज्यादा दिखी. 12 मार्च को दुनिया भर में इस बीमारी की वजह से कुल 134 लोगों की मौत हुई है जिनमें चीन में 11, ईरान में 14, स्पेन में 29 लोगों की मौत हुई है.
दक्षिण कोरिया ने गलती दोहराई लेकिन जापान, सिंगापुर, थाईलैंड जैसे कई देशों ने बहुत कुछ सीखा. एक्सपर्ट तोमास पाइयो का कहना है कि इन देशों ने न केवल चीन में इस बीमारी के फैलने और उसे रोकने के तौर-तरीकों को बारीकी से समझा बल्कि उस पर अमल भी किया. इन देशों ने 2003 में सार्स का प्रकोप झेला था, इसलिए उन्होंने कोरोना को भी गंभीरता से लिया.
चीन के हुबई की तरह इटली यूरोप का, ईरान पश्चिम एशिया का और वॉशिंगटन अमेरिका का कोरोना वायरस का केंद्र बन गया है. इन देशों में मृत्यु दर ज्यादा है क्योंकि हफ्तों से बीमारी फैलती रही लेकिन सरकारी फाइलों में ये नंबर दर्ज नहीं हो रहे थे.
कोरोना वायरस से पीड़ित व्यक्ति इनफेक्शन के बाद औसतन सत्रह दिन तक जिंदा रहता है. पाइयो का कहना है कि अगर अमेरिका में कोई व्यक्ति 29 फरवरी को मर जाता है तो उसे इन्फेक्शन करीब 12 फरवरी को हुआ होगा. पाइयो का कहना है कि कोरोना वायरस के मरीजों की संख्या और उनकी मौत के अनुपात से लगता है कि कई देशों के पास वास्तविक संख्या की जानकारी नहीं है.
कुछ इस तरह पता किया जा सकता है कोरोना मरीजों की सही संख्या
मृत्यु दर के आधार पर मरीजों की वास्तविक संख्या
पाइयो का कहना है कि अगर आपके आसपास किसी कोरोना मरीज की मौत हुई है तो उसके आधार पर उस एरिया में बाकी मरीजों की संख्या का अंदाजा किया जा सकता है. कोरोना के मरीज की मौत औसतन 17.3 दिन में होती है.
पाइयो ने वॉशिंगटन स्टेट का उदाहरण लिया है. मान लीजिए किसी कोरोना मरीज की मौत 29 फरवरी को होती है तो इसका मतलब कि वह व्यक्ति 12 फरवरी के आसपास संक्रमित हुआ होगा. पाइयो इस अनुमान को समझाने के लिए मृत्यु दर एक फीसदी रखते हैं. जिसका मतलब है कि इस इलाके में सौ मरीज होंगे. फिर पाइयो उस औसत समय को लेते हैं जब मामले दोगुने हो जाएंगे. इसके लिए उन्होंने अपने मॉडल में 6.2 लिया है.
अगर सत्रह दिन में मरीज की मौत हो रही है तो इस दौरान कुल मरीज की संख्या में आठ गुनी वृद्धि हो सकती है. ~8 (=2^(17/6)) . इसलिए अगर हम सभी मरीजों को डायग्नोज नहीं करते हैं तो इसका मतलब है आज के दिन एक मौत यानी वास्तव में मरीजों की संख्या 800 है. अगर पाइयो का मॉडल भारत में लगाया जाए तो कर्नाटक के उस इलाके में तकरीब 800 कोरोना मरीज हो सकते हैं.
हालांकि कोई भी मॉडल पूरी तरह सही नहीं होता लेकिन अक्सर महामारी के मामले में मरीजों की सही संख्या आधिकारिक आंकड़ों से ज्यादा होती है ऐसे में इस तरह के मॉडल एहतियात बरतने में कारकर साबित होते हैं.
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